हम आज फिर मिले , क्या हुआ जो मिलन सिर्फ नयनों का ही था
तुम्हारी आँखें फिर एक कहानी बयां कर रही थीं,लाज से लिपटी मानो सारे ज़माने के बंधन हों हमारे बीच
पर शायद मजबूर मैं था मेरी चाहत मेरे सामने थी पर मैं उसे एकटक निहार ना पाया ,शायद मजबूर हालात ने बनाया था प्यार की कसक थी पर मैं उसका आलिंगन भी नहीं कर सकता था
शाम मदहोश थी , अपनी प्रेयसी को किसी और के संग देख रहा था शायद दृश्य मदहोशी को और सुर्ख कर रहा था ,शाम भी जैसे दृश्य की' खूबसूरती' को मानो चुरा लेना चाहती थी
पर कोई इस दीवाने से भी तो पूछो वो शाम उसके लिए क्या लायी थी ? एक अनकही बेबसी जो उसपर रात के तिमिर की तरह हावी हो रही थी
मुस्कराहट की परतों को अपने होठों पर लपेट कर बस देखता रहा ,शायद सोच रहा था भोर की सुनहरी किरणें हर रोज निशा को हरती हैं
पर कब तक करता हालात से समझौता ,खुद को मना लिया था पर इस नादान दिल का क्या करता वो अब भी उस 'अवास्तविक' जिद पर अडिग था
तुम्हारे हँसने की वो मधुर आवाज मेरे शुष्क ह्रदय पे सावन की उस पहली रिमझिम की तरह आई कि लगा मानो सारे ग़म फ़ना हो गए ,एक पल को सिर्फ तुम थी सिर्फ तुम

वही मासूमियत ,वही सच्चाई बस शायद आयाम बदल गए थे
कवि
अनुराग श्रीवास्तव