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Wednesday 21 March 2012

मेरी प्रेयसी :एक अधूरी आशा


हम आज फिर मिले क्या हुआ जो मिलन सिर्फ नयनों का ही था 
तुम्हारी आँखें फिर एक कहानी बयां कर रही थीं,लाज से लिपटी मानो सारे ज़माने के बंधन हों हमारे बीच 
पर शायद मजबूर मैं था मेरी चाहत मेरे सामने थी पर मैं उसे एकटक निहार ना पाया  ,शायद मजबूर हालात ने बनाया था प्यार की कसक थी पर मैं उसका आलिंगन भी नहीं कर सकता था 
शाम मदहोश थी अपनी प्रेयसी को किसी और के संग देख रहा था शायद दृश्य मदहोशी को और सुर्ख कर रहा था ,शाम भी जैसे दृश्य कीखूबसूरतीको मानो चुरा लेना चाहती थी 
पर कोई इस दीवाने से भी तो पूछो वो शाम उसके लिए क्या लायी थी एक अनकही बेबसी जो उसपर रात के तिमिर की तरह हावी हो रही थी 
मुस्कराहट की परतों को अपने होठों पर लपेट कर बस देखता रहा ,शायद सोच रहा था भोर की सुनहरी किरणें हर रोज निशा को हरती हैं 
पर कब तक करता हालात से समझौता ,खुद को मना लिया था पर इस नादान दिल का क्या करता वो अब भी उस 'अवास्तविकजिद पर अडिग था 
तुम्हारे हँसने की वो मधुर आवाज मेरे शुष्क ह्रदय पे सावन की उस पहली रिमझिम की तरह आई कि लगा मानो सारे ग़म फ़ना हो गए ,एक पल को सिर्फ तुम थी सिर्फ तुम 
पर जल्द ही एहसास हुआ कि शायद वो उमंग भरी खिलखिलाहट भी मेरे लिए नहीं थी ,पर वो खिलखिलाहट थी तो उसकी ही 
वही मासूमियत ,वही सच्चाई बस शायद आयाम बदल गए थे 
कवि
अनुराग श्रीवास्तव 

Saturday 17 March 2012

वक़्त का सफ़र (हिंदी काव्य में मेरा प्रथम पदचिन्ह )

अंतहीन इंतज़ार
आज फिर शाम ढलते ही एक अजब सी कसक दिल में उठी लगा शायद रात की खुमारी अभी उतरी नहीं
आँखों में अब भी एक अनजाना सा नशा था ख्वाब कुछ कम नहीं थे

उन परिंदों के साथ ही मैं भी अपना ठिकाना ढूंढ लेना चाहता था पर वक़्त कम था निशा के गहराने के साथ ही मन पर बेचैनी छा रही थी
बेचैनी जिसका अपना खुद वजूद नहीं था आज वो मुझपर हावी हो रही थी

ना जाने क्यों एक अ...नजाना सा तीर चुभा लगा की शायद मैं उसे खो दूंगा
ऐसा पूर्व तो कभी नहीं हुआ , फिर सोचा क्या मैंने ये शैय्या स्वयं नहीं बिछाई

मैं तो खुद शोर से भागना चाहता था और आज ख़ामोशी ने मेरे अंतर्द्वंद में उथल पुथल मचा दी थी
ये कैसी कशमकश थी जिसके साथ रहने पर कभी उसके वजूद की अहमियत ना समझी आज उससे दूरी मेरे नैन सह ना पा रहे थे

आज फिर एहसास हुआ की माँ से दूर हूँ लगा कि पास होता तो मेरे सारे आंसू वो अपने आँचल में समेट लेती
लगा कि ये ज़िन्दगी का कारवां है जिसमे चलते जाना ही शायद ज़िन्दगी है

ये वक़्त का सफ़र है लम्बा होगा
पर शायद अंतहीन नहीं